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Praise and condemnation are complementary, women's special Saint Lalleshwari Ji

Friends, we have read and heard about many male saints like Kabir, Surdas, Tulsidas, etc. Have you ever known about Sant Devi i.e. woman, if yes, then the first name would come to you as Meerabai, but very few people would know that Goddess who had thoughts like Sant Kabir? Every woman should know about this, so today we tell you about the same saint Lalleshwari Devi.

[Images Credit: www.kashmirasitis.com]


There was a fourteenth-century devout poet known as Sant Lalleshwari Ji (1320–1392) who was an invaluable link in the Shaiva Bhakti tradition of Kashmir and the Kashmiri language. Lalleshwari Ji was born in a small village which is situated in the southeast of Kashmir today. Due to lack of happiness in married life, Lalla left home and at the age of twenty-six, took initiation from Guru Siddha Shrikanth and became a saint. She is known by many names like Lalleshwari, Lal, Lalla Arif, Lalla Yogeshwari, Lalishree, etc. This is the very important place of Sant Lalleshwari Ji in the formation of religious and social beliefs. He used to talk as inspiration with many Sufis of Kashmir. His compositions are also known as Lal Vakana. Lalleshwari Ji was also called Kabir of Kashmir.


At that time there was a custom of child marriage in Kashmir, whose parents had married the son of a Kashmiri Pandit at the age of twelve. Husband and mother-in-law misbehaved a lot in the in-laws' house, tortured them a lot, suffered only in the in-laws' house, and because of this misbehavior and sufferings of the in-laws, Lalleshwari left the house. After leaving home, she went on the path of sages and saints, and singing of bhajans was her goal now. Lalleshwari Ji also took initiation from Sant Shri Kanth Maharaj and she became so absorbed in Bhagavad-bhajans that she did not even care about public shame. How many times she forgets to eat and drink and even she is a woman, she doesn't even care about her clothes. Drunk like Meera, people would ridicule her when she passed through the road doing bhajans. Society does not like to do bhajans and kirtans in such a manner that the children coming out of the street used to trouble them a lot.

[Images Credit: www.kashmiribazaar.in]


After reciting bhajans, when she was going back to the temple to her guru, some children started harassing her after her, a cloth merchant did not like to harass and tease the children in this way. The merchant was very good and respected the sages and saints. The merchant drove the children away and he respected and honored Lalleshwari Ji very much. Sant Lalleshwari Ji blessed the merchant and was pleased, but she wanted to teach the merchant something. Lalleshwari asked for a cloth from the merchant and cut the cloth into two pieces, she kept both of those pieces on her shoulders and she went ahead. When someone greeted her on the way, she would tie a knot in the right piece, and when someone laughed she would tie a knot in the left piece of cloth. Coming back, when Lalleshwari Ji asked the merchant to weigh both the pieces of cloth, the merchant weighed and found that both the pieces were equal. Then Lalleshwari Ji said that in the same way we should not take care of praise and condemnation of the society because both are two sides of the same coin and complement each other, both are equal. We should look at praise and condemnation in the same way. To the world, Lalleshwari was arguably Kashmir's most famous spiritual and literary woman, but in Kashmir, she has been revered by both Hindus and Muslims over the years. Hindus worship her as Sant Lalleshwari and Muslims as Lalla Arif.


"Praise and condemnation are one complement,

They should be seen as expressions,

Life is our struggle

Truth must be lived in love."


प्रसंशा और निंदा इक पूरक है, महिला विशेष संत लल्लेश्वरी जी।


मित्रों हमने कई पुरुष संत के बारे में जैसे - कबीर, सूरदास, तुलसीदास आदि संतो को पड़ा है और उन्हें जानते है, उनके विचारों को सुना पढ़ा है। क्या आप ने कभी संत देवी अर्थात् महिला के बारे में जानते है,यदि हां तो पहला नाम आप को मीराबाई का ही आता होगा, परंतु वह देवी जो संत कबीर की तरह की विचारों की थी उनको बहुत कम लोग ही जानते होंगे।इन देवी के बारे में हर महिला को जानना चाहिए,तो आज में आप को उन्ही संत लल्लेश्वरी देवी के बारे में बताते है।

[छवियां श्रेय: www.kashmirasitis.com]


संत लल्लेश्वरी जी (1320-1392) के नाम से जाने जानेवाली चौदहवीं सदी की एक भक्त कवियित्री थी जो कश्मीर की शैव भक्ति परम्परा और कश्मीरी भाषा की एक अनमोल कड़ी थीं। लल्लेश्वरी जी का जन्म एक छोटे से गांव में हुआ था जो की आज कल कश्मीर के दक्षिणपूर्व में स्थित है । वैवाहिक जीवन सु:ख मय न होने की वजह से लल्ला ने घर त्याग दिया था और छब्बीस साल की उम्र में गुरु सिद्ध श्रीकंठ से दीक्षा ली और संत बन गई। इन्हे कई नामो से जाना जाता है लल्लेश्वरी, लाल, लल्ला आरिफ, लल्ला योगेश्वरी, लालीश्री इत्यादि। यह धार्मिक और सामाजिक विश्वासों के निर्माण में संत लल्लेश्वरी जी का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।कश्मीर के कई सूफियों के साथ प्रेरणा रूपी बात करती रहती थी। इनके वाक्य इनकी रचना लाल वाक्य के नाम से भी जाने जाते है।लल्लेश्वरी जी को कश्मीर का कबीर भी बोला जाता था।


उस समय कश्मीर में बाल - विवाह का रिवाज था,इनके माता - पिता ने एक कश्मीरी पंडित के बेटे से उनका विवाह बारह वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था। ससुराल में पति और सासु ने बहुत दुर्व्यवहार किया, इनको बहुत यातनाएं दी, ससुराल में कष्ट ही कष्ट मिले, और ससुराल वालो के इन्ही दुर्व्यहार और कष्टों की वजह से लल्लेश्वरी ने घर त्याग दिया। गृह त्याग के बाद वो साधु और संतो के रास्ते पर निकल गयी और भजन कीर्तन ही इनका अब लक्ष्य रह गया था। लल्लेश्वरी जी ने संत श्री कंठ महराज से दीक्षा भी ले लिया और भगवद्-भजन में वे इतनी लीन रहने लगीं कि लोक-लज्जा का भी उन्हें ख्याल न रहता। कितनी बार वो खाना - पीना भूल जाती और यहाँ तक की वो एक महिला है , अपने कपड़ो को भी ख्याल नहीं रहता। मीरा के समान मतवाली हो वे भजन करती हुई जब सड़क से गुजरतीं, तो लोग उनका उपहास उड़ाते। उनके इस तरह बेशुद्घ हो कर भजन और कीर्तन करना समाज को अच्छा नहीं लगता, जिस गली से वो निकलती बच्चे उनको बहुत परेशान करते।

[छवियां श्रेय: www.kashmiribazaar.in]


भजन कीर्तन करने के बाद जब वो वापस मंदिर अपने गुरु के पास जा रही थी, तब कुछ बच्चे उनके पीछे-पीछे उनको परेशान करने लगे, बच्चो का इस तरह से परेशान करना और चिढ़ाना एक कपडे के व्यापारी को अच्छा नहीं लगा। वह व्यापारी बहुत अच्छे स्वाभाव का थे और साधु संतो की इज़्ज़त करता था। व्यापारी ने बच्चो को भगाया और वह लल्लेश्वरी जी का बहुत आदर और सत्कार किया। संत लल्लेश्वरी जी ने व्यापारी को आशीर्वाद दी और प्रसन्न हुयी, लेकिन वह व्यापारी को कुछ सीख देना चाहती थी। लल्लेश्वरी ने व्यापारी से एक कपडा माँगा और कपडे का दो टुकड़े कर दी, उन दोनों टुकड़ो को वो अपने दोनों कंधो पर रख ली और वो आगे बढ़ती गई। रास्ते में जब कोई उनका अभिवादन करता तो वो दाएं टुकड़े में एक गांठ लगाती और जब कोई हंसी उड़ाता तो वो बाएं कपडे में एक गांठ लगाती। वापस आकर जब लल्लेश्वरी जी ने व्यापारी को कपडे के दोनों टुकड़े का वजन करने को बोला, व्यापारी ने वजन किया और पाया को दोनों टुकड़े बराबर है। तब लल्लेश्वरी जी ने बोला की इसी तरह समाज के प्रशंसा और निंदा का भी हमें ख्याल नहीं रखना चाहिए क्योंकि दोनों ही एक सिक्के के दो पहलु है और एक दुसरे के पूरक है दोनों बराबर होते है। हमें प्रसंशा और निंदा को एक भाव से देखना चाहिए। दुनिया के लिए लल्लेश्वरी जी यक़ीनन कश्मीर के सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक और साहित्यिक महिला थी, लेकिन कश्मीर में वह वर्षो से हिन्दुओ और मुस्लमानो दोनों द्वारा सम्मानित है। हिन्दू उन्हें संत लल्लेश्वरी और मुस्लमान लला आरिफ के नाम से पूजते हैं।


"प्रसंशा और निंदा इक पूरक है,

इन्हे भाव की तरह देखना चाहिए,

जीवन है संघर्ष हमारा,

सत्य प्रेम में जीना चाहिए।"

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