What is the meaning of solitude, solitude is not that we should be away from our relatives, friends, all the members of the house. No, it's not at all. Solitude is the process in which we can only think, understand, and know ourselves for who we are. If we live in solitude, we can think to ourselves about what we are doing, what we are doing, how it can affect us in the future, what we are learning from these activities, what we are doing to others. What can you give? if you or me why not myself.
If I want to do something or want to do something for someone, then I can think of the right reactions by staying in solitude and putting those activities in my life, and if I understand the activities which I can learn in solitude. It is a very difficult task to learn, think, understand those activities by living with others, because when we live with friends, families, family members, their thoughts, their expressions, their guidance, responses, we have many of our rights. We do not remember even thoughts, but we are not able to confirm, due to which we become happy and we become irritated with others, if you want to understand yourself, then you have to take the help of solitude. And you have to recognize yourself. Only then can you benefit and you can do good to others.
एकांत की कला ,होगा जिससे भला।
एकांत का मतलब क्या है एकांत यह नहीं कि हम अपने रिश्तेदारों,दोस्तों,घर के सभी सदस्यों से दूर हो जाएं। नहीं यह बिल्कुल भी नहीं। एकांत वह प्रक्रिया है जिसमें हम सिर्फ अपने आपको सोच,समझ और जान सकते हैं कि हम क्या है। यदि हम एकांत में रहते हैं तो हम अपने बारे में सोच सकते हैं कि हम जो कर रहे हैं, किस लिए कर रहे हैं, इससे हमारे आगे के समय में क्या प्रभाव पड़ सकता है, इन गतिविधियों से हम क्या सीख रहे हैं दूसरों को हम क्या दे सकते हैं। यदि आप या मैं स्वयं क्यों ना हूं।
यदि मैं कुछ करना चाहता हूं या किसी के लिए कुछ करना चाहता हूं तो मुझे एकांत में रहकर ही सही प्रतिक्रियाओं का विचार कर सकता हूं और उन गतिविधियों को अपने जीवन में डाल सकता हूं और यदि मैं जिन गतिविधियों को एकांत में सीख सकता हूं ,समझ सकता हूं, उन गतिविधियों को दूसरों के साथ रह कर सीख पाना, सोच पाना,समझ पाना बहुत मुश्किल कार्य है, क्योंकि हम दोस्तों,परिवारों,घर के सदस्यों के साथ रहने पर उनके विचारों उनके भाव उनके मार्गदर्शन प्रतिकियाओ में हम बहुत से अपने सही विचारो का भी समरण नही कर पर और हम पुष्टि नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण हम प्रसान हो जाते हैं और दूसरों के साथ हमारी चिड़-चिड़ापन हो जाता है, यदि आपको खुद को समझना है खुद को जानना है तो आपको एकांत का सहारा लेना पड़ेगा और अपने को पहचानना पड़ेगा। तभी आपका भला हो सकता और आप दूसरों का भला कर सकते हैं।
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